श्री दत्त महाराज का जागृत देवस्थान 'दत्त पादुका मंदिर', देवास

श्री दत्त महाराज का जागृत देवस्थान 'दत्त पादुका मंदिर', देवास
श्री दत्त महाराज, 'दत्त पादुका मंदिर' देवास

बांगर का दत्त मंदिर, जहां गुरुवार को लगता है शिष्यों का मेला... 

गुरु महाराज गुरु जय-जय परब्रह्म सद्गुरु के अवतार अत्रि ऋषि और सती अनसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय या श्री दत्त महाराज का जागृत देवस्थान है बांगर (देवास) का श्री दत्त पादुका मंदिर, जो किसी भी परेशानी, बीमारी, परीक्षा, नौकरी, व्यवसाय या उलझन से मुक्ति और कामना पूर्ति के सिद्ध स्थल के रूप में जाना जाता है।

देवास से १० किमी दूर गांव बांगर में स्थित आस्था और विश्वास के इस जागृत स्थल पर हर गुरुवार हजारों की संख्या में दूरदराज से आकर श्रद्धालु भक्तजन हाजिरी लगाते हैं, जिनमें युवाओं की संख्या अधिक होती है।

बेलगाम (कर्नाटक) निवासी ब्रह्मचारी केशव गुरुनाथ कुलकर्णी श्री दत्त के अनन्य भक्त थे, जिन्हें लोग काका महाराज कहते थे। गाणगापुर से, जो भगवान श्री दत्त का मुख्य स्थान है, आदेश हुआ कि 'मेरी पादुका लेकर मालवा जाइए और इनकी स्थापना उस स्थान पर करें जो देवी के शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग के मध्य हो। इस स्थान के सामने श्मशान हो। वह भूमि सती की हो और उस जगह जल का अस्तित्व हो।'

आदेश के मुताबिक काका महाराज उस स्थान की खोज में निकल पड़े और बांगर के रूप में उन्हें वह सही स्थान मिला जहां आज श्री दत्त पादुका मंदिर स्थापित है, जिनकी स्थापना १० जुलाई १९७५ (आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा) गुरुवार को की गई। धीरे-धीरे देवस्थान जागृत हुआ और मनोकामना पूर्ण करने वाले सिद्ध स्थान के रूप में पहचाना जाने लगा। इस स्थान पर श्री दत्त प्रतिमा की स्थापना श्री भय्यू महाराज द्वारा की गई है।

मंदिर की विशेषताएं

इस मंदिर की विशेषता है कि मंदिर में खड़े होकर गर्भगृह में विराजमान चरण पादुका, श्री दत्त प्रतिमा और मंदिर का कलश ध्वज एक स्थान से देखा जा सकता है। देवास की मां चामुंडा और उज्जैन के महाकालेश्वर के बीच स्थित बांगर का सिद्ध श्री दत्त पादुका मंदिर तीनों एक ही सीध में आते हैं। 

कहा जाता है कि उज्जैन से होकर गुजरने वाली कर्क रेखा को तीनों मंदिरों की सीधी रेखाएं मिलाती हैं। गौरतलब है कि देवास की टेकरी वाली चामुंडा शक्तिपीठ कहलाती है और उज्जैन का महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग वैराग्य ज्ञानपीठ है और इन दोनों के बीच यह दत्त पादुका स्थान भक्तिपीठ है।