प. पू. परमात्मराज महाराज भगवान दत्तात्रेय के शिष्य और एक सिध्दपुरूष है। उनका जन्म २० मे १९६४ इस दिन हुआ। उन्हे बचपनसेही श्री दत्तगुरू का आशीर्वाद प्राप्त था। भगवान की इच्छा से उन्होने पहले अपनी पढाई पूरी की और इंजिनिअर बनने के बाद ग्रुहत्याग किया। भगवान दत्तात्रेयने उन्हे मंत्रदिक्षा देकर कठोर साधना करवाई। उन्हे दत्तगुरू के साक्षात दर्शन का लाभ मिला है। दत्तगुरू के आदेश एवं उनकी प्रत्यक्ष मार्गदर्शन मे महाराजजीने वैश्विक धर्मग्रंथ 'परमाब्धि' की रचना की। ये एक महान संस्क्रुत ग्रंथ है, जो विभिन्न छंदों में लिखा गया है। उसमें परमार्थ के चारो मार्ग, संप्रदाय एवं विश्व के विभिन्न धर्मग्रंथों का ग्यान और उनका बहूत ही सुंदर समन्वय है। इस ग्रंथ के श्लोक और मराठी अनुवाद सन २००५ में प्रकाशित हुआ। महाराजजीनेही उसका हिंदी अनुवाद भी करके प्रकाशित किया। अब शीघ्रही उसका अंग्रेजी और विविध भारतीय भाषाओंमें अनुवाद प्रकाशित होगा। वैदिक विश्वधर्म में सभी पंथ, संप्रदाय एवं धर्मों को सम्मिलीत कर के विश्वशांती को बढावा देना उनका ध्येय है। इस धर्मग्रंथ के बारे में देशभर के विभिन्न धर्मोंके धर्मगुरू, राजनेता, विद्वान एवं अनेक मान्यवरों के तीन हजार से भी अधिक उत्तम अभिप्राय मिले है।
कोल्हापूर के पास कर्नाटक की सीमा में आडी इस गांव के संजीवनगिरी पर उनका आश्रम है। उन्होने अपनी साधना और परमाब्धि लेखन के बारे में 'स्वानुभव' (मराठी और हिंदी) पुस्तिका में जानकारी दी है। परमाब्धि की वैश्विक आवश्यकता के बारे में उन्होने 'चेयान' पुस्तिका लिखी है।